पूँजीवाद एक कीड़ा
पूँजीवाद आधुनिक युग का एक ऐसा ख़तरनाक कीड़ा है जिसे पाना तो सब चाहतें है लेकिन इसके परिणामों से अवगत नहीं है पूँजीवाद ने वैश्विक चिंताओ ओर प्राकृतिक क्षरण में अपना महत्तवपूर्ण योगदान निभाया हैं
जो देश पहले से पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाकर आगे बढ़ चुके है लेकिन जनसंख्या घनत्व कम और ठीक अनुपात में होने के कारण वे देश कामयाब है जबकि विकासशील देश जिनकी जनसंख्या ज़रूरत से बहुत ज़्यादा है जिसके कारण सरकार फ़ेल हो जाती है इसलिए पूँजीवाद को अपनाने ओर सफल बनाने में सबसे ज़रूरी है जनसंख्या का नियंत्रण में होना।
इसके भयानक ओर प्रभावशाली परिणामों में से एक है (Hitler के समय में पूँजीवाद )
“As you know that without modern technology and new ideas,experiments capitalism never come and it's proven It destroy socialism in every country fastly "
मेने बहुत सारे अनुछेद पढ़े इस विषय में तब लगा कि उनका मत १००% सत्य है तथा उनके लेख काफ़ी सटीक है जिस प्रकार उनके विश्लेषण है उनसे पता चलता है कि उन्होंने काफ़ी गहन अध्यन के बाद अपने विचारों को लोगों के सामने रखा होगा। इससे ये कहना बिल्कुल विचारिनिय है कि पूँजीवाद समाज का दुश्मन है ।
पूँजीवाद जब किसी देश में अपनी जगह बनाने लगता है उस अवस्था में शुरूवती उथल पुथल का होना आम बात है तथा उतार चढ़ाव भी स्वाभाविक है इसका कारण है निजी लाभ कि माँग का हद से ज़्यादा बढ़ जाना क्योंकि हर फ़र्म तथा व्यक्ति विशेष सिर्फ़ अपने निजी लाभ के बारे में सोचता है यही कारण है कि निजीकरण की परिक्रिया तेज़ी से बढ़ने लगती है
जब सरकारें फ़ेल हो जाती है उनकी नीतियाँ बहाल हो जाती है Covid -19 में सभी देशों की सरकारें लगी हुई थी देश बचाने में क्योंकि पैसों की कमी के साथ साथ संसाधनो की कमी के कारण लाखों लोगों की मौत हुईं तथा क़ाम धंधे ठप पड़ गये थे अब ऐसी अवस्था में आकाल सा पड़ जाना भी स्वाभाविक हो जाता है ना रोज़गार, बढ़ती क़ीमतें ओर संसाधनो की कमी दूसरी तरफ़ निवेश में भारी गिरावट, राजस्व में कमी ये चीज़ें इतनी जटिल है कि इनका निवारण लंबे समय तक चलता रहेगा जिसके कारण एक देश फिर विकासशील की श्रेणी में रहेगा ।
why निजीकरण?
जब किसी देश में विकास की गति धीमी हो जाए तब निजीकरण का आना भी स्वाभाविक है क्योंकि सरकार को ना की देश चलाना है बल्कि ओर भी बहुत सी चीज़ों को देखना है जेसे कि सरकार घाटे में हो या मुनाफ़े में फिर भी सरकारी कर्मचारियों को वेतन देना पड़ता है, सभी सेवाओं को चालू रखना पड़ता है हमे लगता है कि सरकार अब किसी और के हाथो मे चली गयी हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता बल्कि अल्पावधि के लिए सरकार कुछ संपत्ति तथा सेवाओं को किसी निजी कंपनी या व्यक्ति के हाथो मे थमा देती है ताकि बाजर मे तरलता तथा राजस्व की प्राप्ति हो सके |
निजीकरण इसलिए भी ज़रूरी है ताकि निजी लाभ को बढ़ाने के लिए कोई भी कंपनी अच्छी सुविधाएं उपलब्ध करा सकें | निजी लाभ मे प्रतिस्पर्धा के कारण फर्म या व्यक्ति अपने आप को सबसे ऊपर देखना चाहता है इससे लोगों को सुलभ और अच्छी सेवाओं की उम्मीद रहती हैं
Why not निजीकरण?
निजीकरण जहा सही है वही दूसरी तरफ ग़लत भी ही हैं क्योंकि जब चीजें किसी निजी कंपनी या व्यक्ति के हाथों में आ जाती है तब वह उसका ग़लत उपयोग भी करने की कोशिश करता हैं वह अपने अनुसार था सिर्फ लाभ कमाने के लिए कार्य करता हैं उसे किसी व्यक्ति की जान तथा प्राकृतिक क्षरण से कोई लेना-देना नहीं होता वो केवल और केवल लाभ कमाना चाहता है निजीकरण के कारण उसे आजादी मिल जाती है लेकिन इसका विपरित प्रभाव पड़ता है समाज पर क्योंकि जब कोई फर्म या व्यक्ति अपने अनुसार कार्य करने लगता है उस स्थिति में लोगों मे आक्रोश फैलने लगता है जिसके कारण सामाजिक आंदोलनों का होना स्वाभाविक है
पूंजीवाद के बढ़ते कदम को देखते हुए ये कहना गलत नहीं है कि आने वाले समय में प्राकृतिक क्षरण बहुत बढ़ जाएगा निजीकरण को पूंजीवाद से जोड़ना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि पूंजीवाद ही निजीकरण को बढ़ावा देता है
"कुल मिलाकर बात यह है कि जब जब पूंजीवाद बढ़ेगा संसाधनों का क्षरण, भ्रष्टाचार, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग तथा सामाजिक आंदोलन का बढ़ना स्वाभाविक रहेगा और पूंजीवाद किसी देश की GDP में वृद्धि कर सकता है लेकिन उसके परिणाम तथा प्रभाव अकल्पनीय और दीर्घकालीन होंगे "
विचाराधारा :- राहुल कुमार प्रजापति
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