ई-रिक्शा का उद्देश्य जब ई-रिक्शा को लाया गया था, तब इसका उद्देश्य था—आम आदमी को सस्ता, सुलभ और ग्रीन ट्रांसपोर्ट देना। बहुत से ऐसे स्थान जहां बस या मेट्रो नहीं पहुंचती, वहां ई-रिक्शा लोगों के लिए एक वरदान साबित हुआ। इसके अलावा, इसने हजारों लोगों को रोज़गार भी दिया है, खासकर उन लोगों को जो पढ़े-लिखे नहीं हैं लेकिन मेहनत करना जानते हैं। असलियत में परेशानी जैसा कि मैं रोज़ देखता हूं—ई-रिक्शा सड़क पर गलत दिशा में चलाना, बीच सड़क पर अचानक रुक जाना, बिना किसी नियम के सवारी चढ़ाना-उतारना, और तंग गलियों में ट्रैफिक को जाम करना अब आम बात हो गई है। हर रोज़ घर लौटते समय ऐसा लगता है जैसे जाम में फँसना तय है—क्योंकि हर मोड़, हर बाजार, हर चौक पर दर्जनों ई-रिक्शा ऐसे खड़े होते हैं मानो सड़क उनकी जागीर हो। असली समस्या क्या है? 1.ई-रिक्शा की समस्या का असली कारण इसका अनियंत्रित संचालन है। 2. ज़्यादातर ड्राइवरों को ट्रैफिक रूल्स की जानकारी नहीं होती, 3. ड्राइविंग लाइसेंस नहीं होता, 4. ना ही उन्हें किसी प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है। 5. ऊपर से, कोई तय रूट, पार्किंग ज़ोन या रेग्युलेशन भी नही...
आज हम जिस दौर में जी रहे हैं, वो एक ऐसा समय है जब प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन गंभीर खतरे में है। पेड़ काटे जा रहे हैं, जंगल नष्ट किए जा रहे हैं, और शहरीकरण की दौड़ में हरियाली की बलि दी जा रही है। इसका सीधा असर हमारी जीवनशैली पर पड़ रहा है, खासकर भविष्य की पीढ़ियों पर। जिस तरह से बच्चे आज पानी की बोतल साथ लेकर स्कूल जाते हैं, वह दिन दूर नहीं जब उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर भी साथ ले जाना पड़ेगा। यह कल्पना मात्र ही भयावह है, लेकिन पर्यावरण की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह दूर की बात नहीं लगती। पेड़ों की कटाई और ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती धरती पर जीवन का आधार पेड़-पौधे हैं। यह न केवल हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित रखते हैं। लेकिन जिस तेजी से पेड़ों की कटाई हो रही है, वह हमारे अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है। हर दिन हजारों पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे ऑक्सीजन का स्तर घटता जा रहा है। इसके साथ ही, पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करते हैं। लेकिन पेड़ों की संख्या में कमी और लगातार बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण...
वीरानी रातें अनुकूल की दोपहर सूरज अपने आधे अवतार में आसमान के ऊपर उठा था। धरती की सांसें थम गई थीं, क्योंकि प्रकृति की गोद में सोने वाली वीरानी रातें अपने समाप्ति के करीब आ रही थीं। गांव के लोग अपने घरों में चले गए थे, अपने-अपने कामों में लिप्त हो गए थे। अधिकांश लोग इस अनुकूल के आगमन के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए सिर्फ एक किशोर लड़के ने उसे देखने के लिए वक्त निकाला। इस किशोर का नाम था रवि। वह दरियापुर गांव में रहता था और उसके पिता एक छोटे से किराना दुकान के मालिक थे। रवि को समुद्र और तारों से बहुत मोहब्बत थी। वह रोज़ रात को आसमान को देखकर खो जाया करता था, जब नक्षत्रों और चाँद की रौशनी धरती को आँखों में भर देती थी। वह वीरानी रातों में भी समुद्र के लहरों की ध्वनि को सुनकर खुश हो जाता था। उसे लगता था कि उस ध्वनि में कुछ खास बात है, जो उसके दिल को छू जाती है। वह समय समय पर समुद्र के किनारे जाता और वहां बैठकर धीरे से समुद्र की लहरों के साथ अपनी बातचीत करने लगता। वह मानता था कि समुद्र उसके सभी राजों को सुन रहा है और उसके साथ बातें कर रहा है। एक रात, जब वह वीरानी रातों में समुद्र के...
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