वीरानी रातें
वीरानी रातें अनुकूल की दोपहर सूरज अपने आधे अवतार में आसमान के ऊपर उठा था। धरती की सांसें थम गई थीं, क्योंकि प्रकृति की गोद में सोने वाली वीरानी रातें अपने समाप्ति के करीब आ रही थीं। गांव के लोग अपने घरों में चले गए थे, अपने-अपने कामों में लिप्त हो गए थे। अधिकांश लोग इस अनुकूल के आगमन के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए सिर्फ एक किशोर लड़के ने उसे देखने के लिए वक्त निकाला। इस किशोर का नाम था रवि। वह दरियापुर गांव में रहता था और उसके पिता एक छोटे से किराना दुकान के मालिक थे। रवि को समुद्र और तारों से बहुत मोहब्बत थी। वह रोज़ रात को आसमान को देखकर खो जाया करता था, जब नक्षत्रों और चाँद की रौशनी धरती को आँखों में भर देती थी। वह वीरानी रातों में भी समुद्र के लहरों की ध्वनि को सुनकर खुश हो जाता था। उसे लगता था कि उस ध्वनि में कुछ खास बात है, जो उसके दिल को छू जाती है। वह समय समय पर समुद्र के किनारे जाता और वहां बैठकर धीरे से समुद्र की लहरों के साथ अपनी बातचीत करने लगता। वह मानता था कि समुद्र उसके सभी राजों को सुन रहा है और उसके साथ बातें कर रहा है। एक रात, जब वह वीरानी रातों में समुद्र के किनारे ज
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